मध्यप्रदेश को आदिमानव की जन्म स्थली क्यों कहा जाता है मध्य प्रदेश का इतिहास पाषाणयुग से ताम्र पाषाणकाल तक | Why is Madhya Pradesh called the birthplace of primitive man?

पाषाणयुग से ताम्र पाषाणकाल तक - मध्य प्रदेश का इतिहास 

> पाषाणयुग का प्रारम्भ का से मन जाता है 

   पुरातत्वविदों के विश्लेषण के आधार पर पाषाण युग का प्रारंभ लगभग 25,000 ईसा पूर्व मन जाता है। 

>  पाषाण युग को कितने भागों में बाटा गया है 

    पाषाण युग को निम्न तीन भागों में बाटा गया है -

* पुरा पाषाण काल - 
1. निम्न पुरा पाषाण काल, 
2.  मध्य पुरा पाषाण काल 
3.  उत्तर पुरा पाषाण काल 

* मध्य पाषाण काल  
* उत्तर पुरा पाषाण काल 


> पाषाण युग का मानव किस प्रकार का जीवन जीता था 
 
    पाषाण युग का मानव जीवन -  पाषाण युग में मनुष्य पत्थरों के औजार बनाकर हिंसक जानवरों से अपनी रक्षा 
    करता था। मानव जंगलों, पर्वतों और नदी घाटियों में विचरण करता था कंदमूल फल या पशुओ का शिकार कर अपना पेट भरता था एवं पहाङों की सुरक्षित गुफाओ को आश्रय स्थल बना लिया करता था।  पाषाण युग में मानव जंगली और घुमन्तु जीवन जीता था। 


मध्यप्रदेश को आदिमानव की जन्म स्थली क्यों कहा जाता है - Why is Madhya Pradesh called the birthplace of primitive man?

    
मध्यप्रदेश को आदिमानव को जन्म स्थली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि प्रदेश के विभिन्न भागो में किये गए उत्खननों और खोजों में प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह मिले है।  कुछ स्थानों पर गेंडा, दरयाई घोडा, सूअर, हिरन आदि की उपस्थिति के प्रमाण व जीवाश्म मिले है नर्मदा की घाटी जीवाश्मों के मामले में बहुत समृद्ध है। 
अमरकण्टक से लेकर होशंगाबाद तक, नर्मदा के किनारे पुरा - पाषाण युग के अनेक अवशेष मिले है।  पत्थर की एक हस्त कुल्हाड़ी तथा प्राचीन काल के हाथी, गेंडा, दरियाई घोडा, रीछ, भैसा आदि  के अस्थि - पंजर नरसिंहपुर के पास भतरा में उपलब्ध हुए है जिन परतों में हस्त - कुल्हाड़ी मिली वह लगभग चार लाख वर्षा प्राचीन मानी गई थी।  1982 में नर्मदा घाटी में सीहोर जिल की बुदनी तहसील के गांव हथनौरा में आदिमानव का पत्थर बन चूका कपाल मिला है वह छह लाख वर्ष पुराना है यह भारत के प्राचीनतम आदिमानव अवशेष है इस खोज से  मध्यप्रदेश क्षेत्र की प्राचीनतम उजागर हुई है अतः मध्य्प्रदेश आदिमानव की जन्म - स्थली  कहलाता है। 



मध्यप्रदेश में शैल चित्र कहा - कहा प्राप्त हुए है 
     मध्यप्रदेश में शैलचित्र पचमढ़ी, होशंगाबाद, सागर, छिंदवाड़ा, छतरपुर, पन्ना, ग्वालियर, सिहोर, रायसेन, विदिशा, गुना, रीवा, मंदसौर, शिवपुरी आदि स्थानों  पर प्राप्त हुए है। 


नव पाषाण काल में मानव किस प्रकार प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ ? समझाइये
    नव पाषाण काल में मानव घुमन्तु या खानाबदोश जीवन से सामाजिक जीवन की ओर कदम बढ़ा रहा था।
    इस काल में कई विधाएँ प्रारम्भ हुई अब आदिमानव भ्रमणशील जीवन छोड़ कर एक निश्चित स्थान पर रहने        लगा था इस युग के उपकरण पालिस युक्त एवं चमकीले थे इस युग के उपकरणों में सेल्ट, कुल्हाड़ी, वसूला,            चिजेक, रचक, घन तथा ओप करने वाले उपकरण प्रमुख थे।  इन उपकरणों के साथ अस्थि निर्मित पलिसयुक्त      उपकरण भी प्राप्त हुए है नव पाषाण युग के उपकरणों के अध्यन से ज्ञात होता है की इस काल का मनुष्य                सभ्यता की दृष्टिकोण से प्रगति की ओर अग्रसर हुआ।  इस काल मनुष्य ने कृषि कार्य का ज्ञान प्राप्त किया, पशु      पालन प्रारम्भ किया तथा मृदभाण्ड कला ( मिटटी के बर्तन ) का आविष्कार किया।  वस्त्र निर्माण, गृह निर्माण,     अस्त्र - शस्त्र का उपयोग और अग्नि का प्रयोग करना सीखा इस प्रकार नव पाषाण युग में मानव प्रगति के पथ       पर अग्रसर हुआ।    



ताम्र पाषाण संस्कृति के  प्रभाव मध्यप्रदेश में कहा मिले है एवं वे किस प्रकार के मानव जीवन को इंगित करते       है 
      
     ताम्र पाषाण संस्कृति के प्रमाण मध्यप्रदेश में नर्मदा, चम्बल और बेतवा के तट  पर मोहन जोदड़ो और हड़प्पा       की समकालीन सभ्यता के अवशेष कायथा तथा दंगवाड़ा ( उज्जैन जिला ), आवरा तथा अहार  ( मंदसौर ),           पिपल्या लोरका ( रायसेन ), एरण ( सागर ) , महेश्वर तथा नवदाहोली ( पश्चिम निमाड़ ), बेसनगर ( विदिशा )       आदि में बड़ी संख्या में मिले है 

     ताम्र पाषाण संस्कृति का मानव जीवन - मानव पक्के माकन बनाने के लिए ईंटो का निर्माण करने लगा था           इसके आलावा उद्दोग धंधे और व्यापार भी करने लगा था धर्म के प्रति उसकी आस्था बढ़ी व उसने पूजा व               प्रार्थना करना शुरू किया इसके साथ ही नृत्य, संगीत और पारिवारिक जीवन के विभिन्न दरश भा इस युग के         मानव का अभिन्न अंग थे।  



 

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