मौसम से अभिप्राय किसी भी स्थान विशेष के किसी निर्दिष्ट समय की वायुमंडली दशाओं तथा तापमान वायुदाब हवा आद्रता एवं वर्षा से होता है।
वायुमंडल की उपयुक्त अदाओं को जलवायु और मौसम के तत्व कहते हैं वायुमंडल के तत्व कहीं पर भी स्थाई नहीं होते हैं स्थान और समय के अनुसार इनमें परिवर्तन होता रहता है
अस्तु किसी स्थान की लघु समय दिन या सप्ताह की वायुमंडली दशाओं के सम्मिलित रूप को मौसम कहा जाता है, जलवायु किसी स्थान के दीर्घ अवधि की मौसम संबंधी दशाओं का मिश्रण होता है दूसरे शब्दों में किसी स्थान की दीर्घकालिन औसत वायुमण्डलीय दशाओं को जलवायु कहते हैं
भारत की जलवायु मानसूनी प्रकार की है। भारत की विशेष भौगोलिक स्थिति एवं विशाल आकार और विस्तार के कारण यहाँ जलवायु की भिन्न भिन्न अवस्थाएं पाई जाती हैं।
> भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक -
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं -
[1 ] अक्षांशीय स्थिति -
भारत की जलवायु को प्रभावित करने में देश की अक्षांश स्थिति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है भारत का अक्षांशीय विस्तार 8 अंश 4 से 37 अंश 6 उत्तरी अक्षांश पर स्थित है एवं पूर्वी देशांतर विस्तार 68 अंश 7 से 97 अंश 25 है
भारत उत्तरी गोलार्ध में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है कर्क रेखा 23 अंश 30 के मध्य से होकर गुजरती है
भारत की विशिष्ट स्थिति के कारण इसकी दक्षिण भाग में उष्णकटिबंधीय जलवायु तथा उत्तर भाग में महाद्वीपी जलवायु पाई जाती है
[ भू मध्य रेखा से कर्क रेखा के बीत वाले भाग को उष्णकटिबंधीय क्षेत्र कहते हैं यह अत्यधिक गर्मी वाला स्थान होता है इस क्षेत्र में सूर्य सीधे लंबवत होता है ]
[2 ] समुद्र से दूरी -
कर्क रेखा भारत को उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंध में बांटती है [ 23 अंश 30 से 0 अंश भू मध्य रेखा का क्षेत्र उष्ण कर्क रेखा के ऊपर का क्षेत्र उपोष्ण ] लेकिन भारत के तापमान के वितरण में समुद्र से दूरी का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है भारत के उत्तरी मैदान में विषम जलवायु महाद्वीपीय प्रकार के होने का यही कारण है।
[ 3 ] भू रचना -
यहां भी भू रचना न केवल तापमान अपितु वर्षा को भी प्रभावित करती है।
देश के उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम को फैला हुआ विशाल हिमालय पर्वत शीत ऋतु में उत्तर से आने वाली अति ठंडी हवाओं को रोककर भारत को अत्यधिक शीतल होने से बचाता है।
यह पर्वत मानसून पवन को रोक कर वर्षा में मदद करता है।
[4 ] जल और स्थल का वितरण -
भारतीय प्रायद्वीप के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर स्थित है।
भारत उत्तर में एशिया महाद्वीप से जुड़ा हुआ है जल और स्थल के इस विन्यास के कारण ग्रीष्म ऋतु में भारत का उत्तर पश्चिमी मैदान भाग अत्यधिक गर्म होकर निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है।
यह निम्न वायुदाब का क्षेत्र हिंद महासागर में आने वाली पवनों को आकर्षित करता है शीत ऋतु में यही भाग अत्यधिक ठंड होकर उच्च वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है
परिणामस्वरूप इस समय पवनें स्थल से जल की ओर चलने लगती है दूसरे शब्दों में यही जल और स्थल पवनें ही मानसूनी पवनें हैं, जो भारत की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित करती है समुद्र से आने वाली हवाएं ही भारत में वर्षा कराती हैं।
[ 5 ] ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली जेट स्ट्रीम पवनें -
भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपरी वायुमंडल में चलने वाली जेट स्ट्रीम पवनों को भी भारत की जलवायु दशाओं के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है
शीत ऋतु में पश्चिमी जेट स्ट्रीम पवनें उत्तरी भारत के ऊपर बहती है किंतु वर्षा ऋतु में ये हिमालय के पार तिब्बत के पठार पर बहने लगती है।
पूर्वी जेट स्ट्रीम पवनों की स्थिति ग्रीष्म ऋतु में 15 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आस पास रहती है इन जेट स्ट्रीम पवनों की प्राकृतिक पर ग्रीष्मकालीन मानसून निर्भर करता है।
भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून की अनियमितता के कारण जेट स्ट्रीम पवनों का उत्तर और दक्षिण खिसकना है।
[ 6 ] मानसून पवनें -
भारत व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है, किंतु यहां की जलवायु पर मानसूनी पवनों का व्यापक प्रभाव देखा जाता है।
ये पवनें हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चला करती हैं
मानसून पवनों के इस परिवर्तन के साथ भारत में मौसम और ऋतुओं का भी परिवर्तन हो जाता है।
> जलवायु का मानव जीवन पर प्रभाव- jalvayu nibandh
किसी भी देश की जलवायु का प्रभाव सामाजिक आर्थिक जीवन पर पड़ता है हमारे देश में भी जलवायु की विविधता का प्रभाव दिखाई पड़ता है!
मानसून को भारतीय आर्थिक जीवन की धुरी कहा जाता है
1.भारत में उपलब्ध जलवायु दशाओं के कारण समानता व कृषि हो सकती है विभिन्न फसलों के लिए यहां का तापमान वर्षभर उपयुक्त है मई और जून महीने में भी यहां सिंचाई उपलब्ध हो वहां खेती की जा सकती है
2. मानसूनी वर्षा की मात्रा कृषि कार्य के उपयुक्त है।
3.जलवायु की विभिन्नता विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए अनुकूल वातावरण उपस्थित करती है पंजाब और उत्तर प्रदेश की जलवायु गेहूं के लिए उपयुक्त है तो पश्चिम बंगाल के जलवायु दशाएं पटसन और चावल के लिए तथा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की कपास के लिए अनुकूल है इस प्रकार देश में उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय दोनों प्रकार की फसलें बोई जाती है
4. जून जुलई तथा अगस्त के महीनों में सबसे अधिक वर्षा होती है तो जल्दी पकने वाली फसलें जैसे ज्वार बाजरा मक्का के लिए लाभदायक होती है
5. वर्षा के कारण चारा भी उपलब्ध हो जाता है जिससे पशु पालन को बल मिलता है कहा जाता है कि प्राचीन काल में भारत में दूध व घी की नदियां बहती थी
यह चारे की पर्याप्त उपलब्धता से ही संभव था लेकिन वर्ष के कुछ महीनों को छोड़कर शेष महीने शुष्क होते हैं
वर्षा काल में उगने वाली घास शुष्क महीनों में सूख जाती है इसलिए यहां सदाबहार चारागाह भूमि का अभाव है
6.गर्मी के बाद होने वाली भारी वर्षा कई लोगों को जन्म देती है गड्ढों तालाबों में जल एकत्र हो जाता है
जिससे मच्छरों का जन्म होता है और रोगों का प्रसार होता है
7.वर्षा की अनिश्चितता का प्रभाव कृषि पर अधिक पड़ता है
वर्षा यदि समय पर और पर्याप्त मात्रा में हो जाती है तो कृषि फसले अच्छी होती है लेकिन यदि मानसून आने में देरी हो जाए या पर्याप्त वर्षा न हो तो कृषि उत्पादक पर उसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ,
इसलिए भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहतें है ,क्योकि अधिकांश क्षेत्रों में कृषि वर्षा पर ही निर्भर है
8. सूखा व् अकाल की स्थिति भारतीय कृषक के लिए चिंता का विषय है। कभी कभी वर्षा की अधिकता से भयंकर बाढ़ें आती हैं।
9. ग्रीष्म ऋतु की उष्ण और नम जलवायु हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है यह हमें आलसी और आराम पसंद बना देती है।
10. ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली लू ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देती है की घर से बाहर निकलना कठिन हो जाता है फलस्वरूप हमारे देश में कार्य करने के घंटे उन्नतिशील देशों की तुलना में कम होते हैं।
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1 टिप्पणियाँ
Excellent
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