निर्मल प्रेम |प्रेम की सुन्दर कल्पना |कविता | love poetry in hindi



    निर्मल प्रेम 

प्रेम की सुन्दर कल्पना,कविता                     


क्या लिखु तेरे लिए 

कुछ कहने को, कुछ लिखने को शब्द ही नहीं 

मै जनता हूँ.. तुम`प्रेमानंद`

इस लिए मै बेबस

सहज कुछ कह पाता ही नहीं !!


इन शब्दों से क्या बया करू 

तुम अनुण,अतुल्य 

मेरे शब्दों में इतनी समर्थता ही नहीं  


जितना मै जानता हूँ खुद को 

हो तुम मेरी प्रार्थना सी 

मेरी प्रार्थना सी निर्मल 

मै कोई दूसरी चीज समझता भी नहीं 


मेरी प्रार्थना स्वीकार हो जाए 

फिर ज़िंदगी संभल जाए 

इससे ज्यादा मै ज़िंदगी से मागता भी नहीं 


मेरे अरमानो का सच्चा वरदान हो 

मेरे मंदिर की मूरत सी हो 

मेरे भजनो की तान और राग हो 

उन शब्दों में प्रेम का भाव हो 

गाऊ क्या उस मूरत से सामने 

जो मेरी सुनता भी नहीं 

उस मूरत की परछाई तुम हो 

अटल निरंक निर्मल प्रेम तुम हो 

और ज्यादा कहु तो सब झूठ लगेगा  

सच कहु तुम नहीं,तो मै निखरता भी नहीं !!


तुम ज़िंदा सूरत साक्ष्य हो 

बस प्रेम ,भाव का बास हो 

इससे ज्यादा ईश्वर से कोई मागता भी नही 


कभी प्रार्थना कभी मूरत कभी प्रेम आनंद 

बन ज़िंदगी में आ जाती 

उसी प्रार्थना उसी ईश्वर का इशारा तुम 

सच मुझे तेरे अलावा ज़िंदगी 

कहीं नजर आती भी नहीं 


कितना  बेरंग था ये सफर फिर 

अगर पत्थर में जान न होती 

कोई न पूजता प्रेम को 

अगर प्रेम में इतनी शक्ति न होती 


फिर मंदिर में पत्थर की मूरत न होती 

अगर पत्थर मे ``प्रेम आस्था`` न होती 

ऐसी ही ये साँसे,रुखी सी लगती   

अगर इन हवाओ में प्रेम बारिश न होती 

कितना बताऊ कितना जताऊ 

इससे ज्यादा मैं जानता भी नहीं!!


जिस तरह करता हूँ मै 

अपने ईश्वर से प्रार्थना 

उस तरह करता हूँ 

पवित्र मन से याचना 

मै उस ईश्वर के अंश के अलावा 

सर झुकाता भी नहीं 


उसकी दुनिया की पवित्रा प्रेम है 

उसकी निगाहो की कदर अनमोल है 

मेरी प्रार्थना का असर लगता है 

वरना मै भटक कर किस्मत से 

मिलता भी नहीं 


थी उचाई पहाड़ो सी ज़िंदगी की 

यूँ उसकी कृपा ही थी 

अंधेरे मे पैर टिकने लग गए 

बिना सीढ़ियों के सहारे 

शायद मै उचाईयो पर पहुँचता भी नहीं 


परखा है मैंने,खुद को अपनी आवाज को 

मेरी बाते सच्ची न होती तो 

`ईश्वर` सुनता भी नहीं 

अगर होता न निर्मल `प्रेम`मन मे 

तो कोई इस सफर पर शायद मिलते ही नही 

होता न प्रेम, सात्विक इतता 

तो मै खुद को, ऐसे परखता भी नहीं 


क्या कहूं तेरे लिए 

कुछ कहने को शब्द ही नही 

मै जानता हूँ तुम `प्रेमानंद` 

इस लिए मै बेबस 

सहज कुछ कह पाता भी नहीं !!


रचनाकार -प्रयाग तिवारी [आत्मपूर्ण ]


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