भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए चलाए गए प्रमुख आंदोलन -
> भारत में पर्यावरण संरक्षण की बात कोई नई नहीं है। पर्यावरण में प्रति जागरूकता सजकता और प्रेम यह भारत मे आदिकाल से देखने को मिला है।
पर्यावरण से लगाव भारतीयों में जन जन के मन में संवेदनशीलता का विषय रहा है। हमारे मनीषियों द्वारा पर्यावरण को आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों रूपों से आत्मसात किया और इसका प्रचार भी किया है।
क्योकिं पर्यावरण प्रकृति के साथ लापरवाही पुरे जीवमंडल के लिए विनाश का खतरा पैदा हो सकता है। इन सब के बीच पर्यावरण और प्रकृति की बात पुराण ,उपनिषद ,श्रीमदभगवतगीता महाभारत रामायण ,में इनका वर्णन खूब मिलता है।
पर्यावरण के तत्वों जल ,पृथ्वी ,अग्नि ,वायु ,आकाश वनस्पति ,आदि के प्रति वेदों पुराणों में बड़ी श्रद्धा व संवेदना देखने को मिलती है। पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए चाहे यज्ञ हवन हो या पौधा को लगाना उनकी सुरक्षा हो या प्रकृति की पूजा हमारे ऋषिमुनियों से साथ आम सामान्य जन समूह ने इसे खूब सासम्मान दिया है।
पर आज विकास और आर्थिक विकास की अंधी दौड़ इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा की इस परिस्थिति में वनो का जीवो का प्राकृतिक स्त्रोतों का जैव विविधता का बहुत ह्रास हो रहा है
प्राकृतिक संसाधनों का न तो विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग हो रहा है न ही उन्हें भविष्य के लिए बचाया जा रहा है। इस सब कमियों के बीच प्रकृतिक संसाधनों और बनो को बचाने के लिए कई आंदोलन हमारे देश में हुए है। जिन्होंने अपनी जागरूकता और सजकता से पर्यावरण को संरक्षण प्रदान किया।
1. विश्नोई आंदोलन - BISHNOI MOVEMENT
विश्नोई आंदोलन 15 वीं शताब्दी में राजस्थान में एक संत थे जिनका नाम संत जांभोजी था जिन्हे स्थानी लोग भगवानजांभेश्वर जी कहा जाता है। इनके द्वारा शुरू किया गया विश्नोई आंदोलन । संत जांभोजी को मानने वाले लोगो में विश्नोई समुदाय के लोगो की संख्या में वृक्षों की पूजा और संरक्षण किय जाता है।
इस आंदोलन से सीख लेकर सन 1731 ई. में अमृता देवी विश्नोई ने अपनी 3 बेटियों सहित वनो की कटाई को रोकने के लिए अपने प्राण दे दिय। इस आंदोलन को 'खेजरली आंदोलन' भी कहते है। इन्ही के नाम पर राजस्थान की सरकार पर्यावरण संरक्षण व्यक्तियों और संस्थानों को अमृता देवी पर्यावरण पुरस्कार देती है।
संत व गुरु जंभेश्वर द्वारा बताए गए नियमो का विश्नोई समुदाय खूब पालन करता है। वहीँ इसके समृद्धीकरण के लिए खूब प्रयास भी करता है। इस आंदोलन से यह समझा जा सकता है कि पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता व प्रेम हमारे इतिहास से ही अधिक मजबूती से रहा है।
2. चिपको आंदोलन 1974 = chipko movement -
चिपको आंदोलन की शुरुआत 26 मार्च 1974 में वर्तमान उतराखंड [तब का उतरप्रदेश ]के रैणी गावं के जंगलो में लगभग 2500 पेड़ों की कटाई के लिए निलामी थी। इस कटाई को रोकने के लिए गौरा देवी तथा अन्य स्थानियो महिलाओं ने कटाई और निलामी के विरोध मे उन्हें रोकने के लिए महिलाओ ने पेड़ो को पकड़कर उनसे चिपक कर खड़ी हो गई।
यह विरोध आंदोलन शांत एवं अहिंसक विरोध प्रदर्शन रहा। व्यवसाय के लिए हो रहे वनो की कटाई को रोकना चिपको आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था। इस भारी विरोध और पर्यावरण के प्रति संवेदना देख कर अंत में सरकार के साथ वन्यजीव अधिकारीओ ने गौरा देवी की बात को स्वीकार कर लिया। इसके साथ ही वनों की निलामी बंद कर दी गई।
इस आंदोलन के प्रमुख जनक ,सुंदरलाल बहुगुणा ,गौरा देवी ,चंडी प्रसाद भट्ट तथा अन्य कार्यकर्ताओ के साथ ज्यादातर महिलाए थी। इस आंदोलन मे महिलाओ की सहभागिता प्रमुख रही। इस आंदोलन का असर देश भर में देखा गया इसके साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अन्य जगहों में भी कुछ इसी तरह आंदोलन देखने को मिले। जैसे हिमांचल प्रदेश ,दक्षिण कर्णाटक ,पश्चिम राजस्थान ,पूर्व बिहार और मध्य भारत में देखे गए।
इस आंदोलन के साथ ही विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफलता प्राप्त की गई। यह आंदोलन पर्यावरण के प्रति जागरूकता ,सचेतना और नीतियों के प्रति अच्छा सफल आंदोलन रहा।
3. साइलेंट वैली आंदोलन - SIKENT VALLEY MOVEMENT
साइलेंट वैली का क्षेत्र केरल एवं तमिलनाडु के अंतर्गत आता है। साइलेंट वैली वह क्षेत्र है। जो की अत्याधिक घना है और घना होने की वजह से यह क्षेत्र एकदम शांत रहना है। इस लिए इसे शांत घाटी व इंग्लिश में साइलेंट वैली कहा जाता है।
साइलेंट वैली आंदोलन इस क्षेत्र में लगने वाले जलविद्दुत प्रोजेक्ट के विरोध में किया गया। यह प्रोजेक्ट केरल राज्य के पलक्क्ड़ जिले के सदाबहार उष्णकटिबंधीय वनो को बचाने के लिए ,साइलेंट वैली आंदोलन शुरू हुआ। आपको मालूम है कि साइलेंट वैली अपने जैव मंडल क्षेत्र के लिए विख्यात है। यहाँ दुर्लभ प्रजातियाँ ,पौधो एवं जंतुओं की विभिन्न प्रजातिया पाई जाती है। अगर यहाँ जलविद्युत प्रोजेक्ट चालू होता तो यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता एवं विविधता नष्ट होने का पूरा खतरा था। इस लिए यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के कारगर सावित हुआ।
4. नर्मदा बचाओ आंदोलन = NARMADA BACHAO MOVEMENT
यह आंदोलन नर्मदा नदी के ऊपर बनाई जा रही बहु उद्देशीय बांध परियोजना को रोकने के लिए चलाया गया। इस आंदोलन का नेतृत्व मेधा पाटेकर ,बाबा आमटे एवं अरुंधति रॉय द्वारा किया गया। यह आंदोलन आदिवासियों किसानो एवं पर्यावरण प्रेमीओ के द्वारा चलाया गया।
यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बन रहे बड़े बड़े बांध एवं जलविद्युत प्रोजेक्ट के द्वारा नर्मदा एवं प्रकृति के ऊपर पड़ रहे प्रभावों को रोकने के लिए वह आंदोलन किया गया।
5. जंगल बचाओ आंदोलन - JUBGLE BACHAO MOVEMENT
यह आंदोलन की शुरुआत बिहार से हुआ। 1980 के समय में बिहार की धरती से शुरू हुआ। यह आंदोलन झारखण्ड उड़ीसा के क्षेत्रों तक फैला। सरकार द्वारा जंगल की कटाई करने की एक योजना बनाई जिसके तहत जंगलों को काट कर नए सागौन के वृक्षों को लगाने की नीति थी जिसका विरोध बिहार के सिंहभूम जिले के आदिवासियों के द्वारा शुरूकिया गया।
इस विरोध के कारण जंगलों को बचाया गया व सरकार की यह व्यवसायिक सोच को " A GREAD GAME OF POLITICAL POPULISM' कहा गया।
👉👉 किसान आंदोलन: भारतीय इतिहास में | कृषक आंदोलन का ऐतिहासिक क्रम peasant movement in british india
6. नवदान्या आंदोलन - NAVDANYA MOVEMENT
नवदान्या आंदोलन 1982 में शुरू किया गया। नवदान्या की स्थापना 1982 में वंदना शिवा द्वारा की गई। इसका लक्ष्य जैव विविधता ,पर्यावरण एवं वन्यजीव का संरक्षण एवं जैविक खेती को प्रोत्साहित करना था।
यह संगठन किसानो की सहायता की उन्हें सही जानकारी के साथ उन्हें उनके मुनाफे की खेती करना सिखाया। उन्हें लिए बाजार उपलब्ध करवाए।
7. अप्पिको आंदोलन - APPIKO MOVEMENT
जिस तरह से 1974 में उत्तराखंड में चिपको आंदोलन हुआ व पर्यावरण संरक्षण के पहल को सफल बनाया गया। उसी से प्रेरित हो कर उसी के तर्ज में दक्षिण भारत में चिपको आंदोलन चलाया गया जिसे दक्षिण भारत में अप्पिको का नाम दिया गया जिसका अर्थ होता है 'गले लगाना '
8. गंगा बचाओ आंदोलन - SAVE GANGA MOVEMENT
यह आंदोलन गंगा में बढ़ रहे प्रदुषण को काम करने तथा उसे स्वक्छ रकने के लिए ब्यापक तौर पर चलाया गया.इस आंदोलन को मुख्य रूप से गंगा के प्रवाह क्षेत्रों उत्तरप्रदेश और बिहार में चलाया गया। इस आंदोलन में मुख्य रूप से धार्मिक नेताओं ,अध्यात्मवादियों ,राजनीतज्ञों ,वैज्ञानिको ,पर्यावरणविदों दवाला चलाया गया। गंगा को पवित्र रखने के लिए इस आंदोलन में सरकार भी हर साल कई करोड़ खर्च किये जा रहे है फिर भी गंगा में प्रदुषण अब भी वाइस का वैसा ही है।
9. मैती आंदोलन - MAITI MOVEMENT
मैती आंदोलन की शुरुआत 1994 में उत्तराखंड के चमोली जिले में कल्याण सिंह रावत द्वारा चलाया गया। कल्याण सिंह रावत द्वारा शादी विवाह में शादी के समय जूता चोरी की रस्म में नेंग की परम्परा को ख़त्म करते हुए दूल्हे के द्वारा लड़की के घर में एक पेड़ लगाने की रस्म की शुरुआत किया। उत्तराखंड में मायके को मैती कहा जाता है इस लिए इस आंदोलन का नाम मैती आंदोलन हुआ। यह आंदोलन और यह सुन्दर विचार धीरे धीरे आस पास के राज्यों में फैला और एक विशाल आंदोलन बन कर सामने आया।
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THANK YOU ....
3 टिप्पणियाँ
Superb.. Nice
जवाब देंहटाएंNice..bahut badhiya jankari
जवाब देंहटाएंWah..excellent ..100%
जवाब देंहटाएंthank you ...