न जाने कितनी कोरी कल्पनाए के रहते हुए भी हम सारा जीवन प्रेम की झूठी कल्पनाए भरते रहते है जबकि परमसत्य के सत्य की हम कल्पनाए ही नहीं कर पाते !
- हाँ मैं भी प्रेम की
झूठी कल्पनाए भर सकता हूँ
जिस उम्र में हूँ
बहुत कुछ लिख सकता हूँ
आज इस दौर में
प्रेम बिका दौलत हस्ती पर
जो न बिके.. तो
निस्वार्थ निर्मल, कह सकता हूँ
जन्मो जन्म निभे
तो ``प्रेम`` कह सकता हूँ !!
सुनता हूँ आज
कई प्रेम के शायरों को
जो जितनी झूठी
कल्पना गढ़े
वही खूब प्रेम शायर है
प्रेम जैसे सास्वत को
कोई कैसे ,झूठ गढ़ सकता है
परमसत्य का सत्य है ``प्रेम``
कोई कैसे कुछ भी लिख सकता है
मिले कोई विदुषी तो साथ चलो
जन्म मरण के बंधन से
मुक्ति के द्वार चलो
हाँ लम्बा सफर
तुम्हारी तन्हाई का
तन्हा हो अगर तो साथ चलो
पकड़ो हाथ उसी पल
कोई बंधन से मुक्त मिले
`जीवन` ऊपर हो तन से
तन से ज्यादा मन मिले
इस अधर उम्रकैद को
कोई सार्थक उद्देश्य मिले
वही जीव का जीना है
जिसे इंसानो में ``भगवान`` दिखे !!
इस छोटी सी उम्र को
बेगार ढर्रे में उतार दिए
बुनते बुनते ख्वाहिशो को
वासनाओ में ही उलझ गए
कुत्सित कुंठित वृतिया हमारी
कहाँ जीवन कहाँ मौज
कहां प्रेम ,आंनद मिले
इस व्यूह व्यापर की दुनिया में
प्रेम भी हमने बेच लिए
सीख लिया ,कूड़ा
चालाकियाँ फरेब की
अब फरेबी को क्या ``बुद्ध`` मिले !!
क्या यही प्रेम है यही कल्पना
तन से तन सिर्फ भोग मिले
बाजार सजे सिर्फ लोभ लाभ के
चरित्र की क्या पहचान मिले
अब खुशिया जीवन डिजिटल है
डिजिटल में क्या अध्यात्म मिले
घिरे रहो... तुम नश्वर हो
तुम को क्या ``राम `` दिखे !!
रचनाकार -प्रयाग तिवारी [आत्मपूर्ण ]
> 1 नवंबर मध्य प्रदेश स्थापना दिवस मध्य प्रदेश सौंदर्य गान madhya pradesh saudary gaan
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1 टिप्पणियाँ
Excellent.. super poem
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