किस तरह कुतुबद्दीन ऐबक एक गुलाम से सुल्तान कैसे बना ? जानिए तराईन का युद्ध और चन्दावर के युद्ध के बारे में

 

                  दिल्ली  क़ुतुबमीनार  -20-01 -2020  फोटोग्राफर - प्रयाग तिवारी ,विनीत दुबे 

किस तरह कुतुबद्दीन ऐबक एक गुलाम से सुल्तान कैसे बना ? जानिए तराईन का युद्ध और चन्दावर के युद्ध के बारे में ,

कुतुबद्दीन ऐबक गुलाम वंश की स्थापना करता है साथ ही गुलाब वंश का पहला शासक बना। सन 1206 ई. में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबद्दीन ऐबक लाहौर का शासक बना। 


गुलाम वंश - 1206 से 1290 तक के मध्य दिल्ली सल्तनत पर जिन तुर्क सरदारों ने  शासन  किया है ,उन्हें गुलाम वंश का शासक माना जाता है । 


मोहम्मद गौरी ने 1175 में मुल्तान  [पाकिस्तान ] पर प्रथम आक्रमण किया। दूसरे आक्रमण के अंतर्गत मोहम्मद गौरी ने सन 1178 में गुजरात पर आक्रमण किया। तभी इस आक्रमण में भीम द्वितीय [मूलराज 2 ] जो की चालुक्य वंश का शासक था। भीम द्वितीय ने मोहम्मद गौरी को आबू पर्वत के समीप रोक दिया दोनों की बीच भिड़ंत हुई जिसमे  भीम द्वितीय ने मोहम्मद गौरी को परास्त किया। इस प्रकार मोहम्मद गौरी की भारत में यह प्रथम हार हुई। 


इसके बाद आगे चल कर मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच 1191 में 'तराइन का प्रथम युद्ध 'हुआ। जिसमे पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को बुरी तरह परास्त किया। मगर मोहम्मद गौरी को जिन्दा छोड़ दिया। जो कि चौहान की बड़ी गलती साबित हुई आगे चल कर। जिसके बाद गौरी लगभग 1 वर्ष तक अपनी पराजय का बदला लेने के लिए सैन्य शक्ति बढ़ाता रहा और फिर 1192 में मोहम्मद गौरी  पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 


इस  विद्रोह  या युद्ध के पीछे  कन्नौज का शासक जयचंद्र का  बड़ा षड़यंत्र  था  जो की  चौहान से अपनी दुश्मनी का बदला देने के लिए एवं  दिल्ली का सुल्तान बनने के लिए  मोहम्मद गौरी का साथ दिया  और उसके  षड़यंत्र  में शामिल रहा  जिसके कारण  गौरी  पृथ्वीराज से युद्ध जीतने में सफल रहा। 

दोनों के बीच  सन 1192 ई. में  तराईन  का दूसरा युद्ध होता है।  जिसमे  पृथ्वीराज  चौहान  पराजित हो जाता है  और बंदी बना लिया जाता है  इसके परिणाम स्वरुप  गौरी  पृथ्वी राज चौहान की हत्या करवा देता है।  

सन 1194 ई. में जयचंद  जिसने 1192 में गौरी का साथ दिया था ,और पृथ्वीराज से  षड़यंत्र किया था।  ये वो ही जयचंद्र था। जयचंद्र  अपने  मकसद  में कामयाब नहीं हो पाया  उसकी सोच उल्टा पड़ गई और एक और युद्ध  चन्दावर का  युद्ध हुआ। 


दरअसल  जयचंद्र  यह सोच  रखता था की वह  गौरी की सहायता करके  दिल्ली का शासक बन जायगा। गौरी अपनी पराजय का  बदला पृथ्वीराज से लेकर अपने क्षेत्र वापस लौट जायगा। और सत्ता की कमान वह खुद  पा  लेगा।  इसलिए  षड़यंत्र  के द्वारा  गौरी का साथ दिया और पृथ्वीराज को  गौरी के हाथो  पराजित हो कर  मरना पड़ा ,इस लिए इतिहास  में  जयचंद्र को एक षड़यंत्र करी  माना जाता है जो की अपने देश के साथ धोखा किया।  

चन्दावर  के युद्ध  में जयचंद्र   पराजय  हुआ।  इसके साथ ही उसकी हत्या कर दी गई। दिल्ली पर अधिकार करने के  बाद  मोहम्मद गौरी 1206 में मोहम्मद गौरी  जब भारत  से गजनी जा रहा था तो रास्ते में खोक्खर समूह ने  रास्ते  में उसकी हत्या कर दी। 


मोहम्मद गौरी जब भारत  आया था तब उसके साथ कुछ उसके गुलाम  भी  साथ  भारत आय थे। सन 1206 ई. में गौरी की मृत्यु के बाद  उसका कोई पुत्र  न होने के कारण  लाहौर की जनता ने मोहम्मद  गौरी  के प्रतिनिधि  व  गुलाम कुतुबद्दीन  ऐबक को  शासन  करने के लिए बुलाया गया इस तरह  ऐबक  एक गुलाम से सुल्तान बना। 

गौरी की तरह  कुतुबद्दीन  ऐबक  भी सन  1194 में अजमेर को जीता। अपनी जीत के साथ  अजमेर में स्थित  जैन मंदिर एवं  संस्कृत विश्वविद्यालय  को नष्ट  कर दिया  एवं उसके मलबे से  वहाँ कुव्वत -उल - ईस्लाम  मस्जित  एवं  अढ़ाई दिन का झोपड़ा  का निर्माण  कराया । 


सन  1206 ई. में  कुतुबद्दीन  ऐबक  ने  लाहौर में अपना विधिवत  राज्याभिषेक करवाया और  शासक बना। ऐबक ने  सुल्तान की उपाधि धारण न स्वीकार करते हुए ,खुद को मलिक एवं  सिपहसलार  की पदवी से संतुष्ट रखा। कुतुबद्दीन ऐबक  ने खुद के नाम पर न  तो सिक्के चलवाए  और न ही खुतबे पढ़वाए।


मोहम्मद गौरी जब भारत आय था तब उसके साथ कई  उसके  गुलाम  कई सैनिक आये थे  उनमे से  कुतुबद्दीन  ऐबक  और  अन्य  गुलाम उत्तराधिकारियों में  गयासुद्दीन मुहम्मद , ताजुद्दीन एल्दौज ,नसीरुद्दीन कुबाचा  थे।  जिनका विद्रोह  कुतुबद्दीन  ऐबक  को  सुल्तान बनने पर झेलना पड़ा। जिससे बचने के लिए  ऐबक़ ने  वैवाहिक सम्बन्ध  बनाना  चालू किया। जिसके परिणाम स्वरुप  कुतुबद्दीन ऐबक  ने  खुद ताजुद्दीन  एल्दौज  की पुत्री से विवाह किया ,जो की गौरी के बाद गजनी का शासक  था। नासिरुद्दीन  कुबाचा  से अपनी बहन का  तथा  बदायूँ का सूबेदार  इल्तुतमिश से अपनी पुत्री का विवाह  कर  वैवाहिक संबंध  स्थापित किया । 


सभी ने ऐबक़ को  सुल्तान माना एवं  कुतुबद्दीन ऐबक  तुर्की राज्य का स्वतंत्र  संस्थापक बना।  ऐबक को  लाखबख्श [ लाखो का दानी ] कहा जाता है। कुतुबद्दीन  ऐबक के राजदरवार में  विद्वान  हसन निजामी  एवं फखए - मुदब्बिर  को संरक्षण मिला था। 


कुतुबद्दीन  ऐबक  ने सूफी  संत  शेख  ख्वाजा  कुतुबद्दीन  बख्तियार  काकी  की स्मृति  में दिल्ली में कुतुबमीनार  का निर्माण  कार्य चालू करवाया। जिसे  ऐबक की मृत्यु के बाद  उसी का दामाद इल्तुतमिश ने  कुतुबमीनार का  पूर्ण निर्माण  करवाया। सन  1210 में कुतुबद्दीन ऐबक की लाहौर  में चोगान  पोलो खेलते हुए  घोड़े से गिर जाता है   और उसकी  मृत्यु हो जाती है। आगे  लाहौर की जनता ने उसी के दामाद जो की बदायूँ का सुबेदार था  इल्तुतमिश  उसे बुलाया गया और शासक बनाया गया। इल्तुतमिश ने ही अपनी राजधानी लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया। 


इस तरह एक गुलाम  कुतुबद्दीन ऐबक  सुल्तान  बना। व गुलाम वंश की स्थापना करता है  चूँकि  वह गुलाम था इस लिए  यह वंश गुलाम  कहलाया। 





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ